सोरायसिस एक जटिल और दीर्घकालिक त्वचा रोग है जिसमें त्वचा पर लाल, सूखी, पपड़ीदार और खुजलीदार चकत्ते बन जाते हैं। यह समस्या न केवल शारीरिक परेशानी देती है बल्कि मानसिक रूप से भी व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। इस रोग के इलाज के लिए आधुनिक चिकित्सा में कई प्रकार की क्रीम, दवाएं और थेरेपी उपलब्ध हैं, लेकिन इनके दुष्प्रभाव और सीमाओं के कारण लोग आयुर्वेद की ओर रुख कर रहे हैं। अक्सर पूछा जाता है कि क्या आयुर्वेद में सोरायसिस का इलाज संभव है? इसका उत्तर "हां" हो सकता है, क्योंकि आयुर्वेद जड़ से उपचार करने पर विश्वास करता है। आयुर्वेद के अनुसार सोरायसिस को "कुष्ठ रोग" की श्रेणी में रखा गया है और इसका मुख्य कारण दोषों (विशेष रूप से वात और कफ) का असंतुलन माना जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार की विधियां अपनाई जाती हैं जैसे पंचकर्म, औषधीय स्नान, हर्बल तेलों से मालिश, और विशेष जड़ी-बूटियों का सेवन। यह दृष्टिकोण शरीर को विषमुक्त कर रोग की जड़ पर काम करता है। एक बार फिर पूछा जाए कि क्या आयुर्वेद में सोरायसिस का इलाज संभव है? तो यह कहा जा सकता है कि यह एक संभावित और सुरक्षित विकल्प है जो शरीर के संतुलन को पुनःस्थापित करता है। आयुर्वेदिक उपचार में नीम, हरिद्रा, मंजीष्ठा, खदिर और त्रिफला जैसी जड़ी-बूटियों का प्रयोग आम है, जो रक्त को शुद्ध करती हैं और त्वचा को भीतर से स्वस्थ बनाती हैं। यह उपचार धीमा हो सकता है, लेकिन इसके दीर्घकालिक लाभ अधिक होते हैं और इसका कोई विशेष साइड इफेक्ट नहीं होता। इसके साथ ही जीवनशैली में बदलाव, योग और संतुलित आहार को भी आयुर्वेद में अत्यधिक महत्व दिया गया है। अतः, यदि आप भी किसी सुरक्षित और समग्र उपचार की तलाश में हैं, तो आयुर्वेदिक उपाय आपके लिए उपयोगी हो सकते हैं। हालांकि, किसी योग्य आयुर्वेदाचार्य से परामर्श लेकर ही इलाज प्रारंभ करें। सोरायसिस का इलाज कोई त्वरित प्रक्रिया नहीं है, परन्तु आयुर्वेदिक पद्धति से धैर्य और सही मार्गदर्शन के साथ सकारात्मक परिणाम संभव हैं।
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